नई दिल्ली :- अगर हम पहले के समय की बात करें तो हवाई यात्रा काफी महंगी होती थी। जिसमें सफर करना किसी भी व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। लेकिन समय के साथ-साथ टेक्नोलॉजी का विकास हुआ और हवाई यात्रा आम व्यक्ति के लिए भी सुगम और सरल बनती गई। आजकल हर कोई हवाई यात्रा करना पसंद करता है।
जहां पर बैठकर वह घंटो का सफर बस कुछ ही समय में आराम से पूरा कर लेता है। वहीं जब से डिजिटल युग की शुरुआत हुई है तब से लोग अपने मोबाइल फोन के बिना किसी भी जगह पर जाना पसंद नहीं करते हैं। हालांकि इसका उपयोग भी पहले की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ गया है। हर समय हमें अपने फोन और इंटरनेट की जरूरत महसूस होती है। इसके बिना हमारे सारे काम अधूरे रह जाते हैं।
जहां पहले के समय में हवाई यात्रा के दौरान यात्री आराम से बैठकर कुछ पढ़ते थे या फिल्म देखा करते थे। आज के समय में वहीं हवाई जहाज में यात्रा के दौरान अब यात्री कॉल पर बात कर सकते हैं, सोशल मीडिया जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब वीडियो देख सकते हैं। इसके अलावा ऑफिस के ईमेल या काम का जवाब दे सकते हैं।
साथ ही ऑनलाइन मनोरंजन की चीजें भी देख सकतेहैं। हैरानी की बात यह है कि जहां किसी दूर दराज गांव या घरों में इंटरनेट गड़बड़ाने लगता है फिर किस तरह से 40000 फीट की ऊंचाई पर हवा में लोगों को वाईफाई की सुविधा उपलब्ध हो पाती है। जमीन से इतनी ऊंचाई पर इस तरह की सुविधा कैसे संभव है? आइए, जानते हैं इसके बारे में-
कैसे काम करता है हवाई जहाज में इंटरनेट :-
हवाई जहाज में इन फ्लाइट इंटरनेट सिस्टम दो प्रकार की टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं। पहला एयर-टू-ग्राउंड सिस्टम है। जिसमें विमान में लगा एक एंटीना जमीन पर मौजूद सबसे नजदीकी टावर से सिग्नल पकड़ता है और एक निश्चित ऊंचाई तक कनेक्शन को निर्बाध बनाए रखने का काम करता है। यह तब तक ही हो पाता है जब तक विमान बिना ग्राउंड टावर वाले क्षेत्र से नहीं गुजरता है। मुख्य रूप से ज़मीन पर लगे टावर सिग्नल को ऊपर की ओर प्रक्षेपित करते हैं। साथ ही, इस मामले में इस्तेमाल किए जाने वाले ऑन-बोर्ड एंटीना को हवाई जहाज के नीचे लगाया जाता है जो इंटरनेट सेवा प्रदान करता है।
दूसरा सैटेलाइट आधारित वाईफाई सिस्टम है जो सीधे विमान पर लगे एंटीना को सिग्नल भेजती है। इस बीच, हवा से ज़मीन पर आधारित नेटवर्क सैटेलाइट का इस्तेमाल करके सिग्नल को पहले ज़मीन पर लगे ट्रांसमीटर और फिर विमान में लगे एंटेना तक भेजते हैं। सैटेलाइट-आधारित सिस्टम तब ज़्यादा कारगर होता है जब विमान समुद्र के ऊपर उड़ रहा हो।
उपग्रह यानी सेटालाइट आधारित वाई-फाई प्रणाली में विमान के ऊपरी हिस्से पर एंटीना लगे होते हैं और सिग्नल प्राप्त करने के लिए उन्हें लगातार अपनी स्थिति समायोजित करनी पड़ती है। डाटा को ऑन-बोर्ड राउटर के माध्यम से यात्री के व्यक्तिगत डिवाइस पर भेजा जाता है, जो बदले में विमान के एंटीना से जुड़ा होता है। जब विमान 3,000 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचता है, तो ऑन-बोर्ड एंटीना सैटेलाइट-आधारित सेवाओं में बदल जाती है।
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