ओडिशा :- सरकार ने आईपीएस अधिकारी पंडित राजेश उत्तमराव को सस्पेंड कर दिया है. निलंबन का आधार ‘गंभीर कदाचार’ को बनाया गया है. IPS अधिकारी पर एक शादीशुदा महिला इंस्पेक्टर के घर में जबरन घुसकर उससे बदसलूकी का आरोप है. कथित घटना 27 जुलाई की रात को हुई थी. 2007 बैच के IPS अधिकारी पंडित फिलहाल डीआईजी के पद पर तैनात हैं. गृह विभाग के आदेश में कहा गया है, ओडिशा सरकार, अखिल भारतीय सेवा नियम, 1969 के नियम 3 के उप-नियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, श्री पंडित राजेश उत्तमराव, आईपीएस को तत्काल प्रभाव से निलंबित करती है.
भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी के रूप में गंभीर कदाचार के लिए उत्तमराव के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है. निलंबन अवधि के दौरान, पंडित कटक स्थित राज्य पुलिस मुख्यालय में तैनात रहेंगे. गृह विभाग के आदेश में उन्हें पुलिस महानिदेशक की अनुमति के बिना मुख्यालय नहीं छोड़ने को कहा गया है. निलंबन के दौरान उन्हें नियमों के अनुसार निर्वाह भत्ता मिलेगा. हालांकि, उन्हें यह भत्ता तभी मिलेगा जब वह यह प्रमाण पत्र देंगे कि वह किसी अन्य काम या व्यवसाय में शामिल नहीं हैं.
पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के प्रावधान :-
केंद्रीय गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध ‘द पुलिस एक्ट, 1861’ के अनुसार, राज्य सरकार किसी भी समय पुलिस महानिरीक्षक, उप महानिरीक्षक, सहायक महानिरीक्षक और जिला पुलिस अधीक्षक और अधीनस्थ रैंक के किसी भी पुलिस अधिकारी को बर्खास्त, निलंबित या पदावनत कर सकती है, जिसे वह अपने कर्तव्य के निर्वहन में लापरवाह या उसके लिए अयोग्य समझती हो. जो कोई पुलिस अधिकारी अपने कर्तव्य का लापरवाही या उपेक्षापूर्ण तरीके से निर्वहन करेगा, या जो अपने किसी कार्य से अपने आप को उस कर्तव्य के निर्वहन के लिए अयोग्य बना देगा, उसे निम्नलिखित दंडों में से कोई भी दंड दे सकता है:
- एक महीने के वेतन से अधिक नहीं की राशि का जुर्माना
- पंद्रह दिनों से अधिक की अवधि के लिए क्वार्टर में कारावास;
दंड-ड्रिल, अतिरिक्त गार्ड, थकान या अन्य कर्तव्य के साथ या उसके बिना - अच्छे आचरण के वेतन से वंचित करना
- किसी भी प्रतिष्ठित पद या विशेष पारिश्रमिक से हटाना
पुलिस अधिकारी के सस्पेंड होने का मतलब :-
हर पुलिस अधिकारी को उसकी नियुक्ति पर, महानिरीक्षक या महानिरीक्षक द्वारा नियुक्त ऐसे अन्य अधिकारी की मुहर लगा एक प्रमाण-पत्र दिया जाता है. यह प्रमाण-पत्र धारण करने वाले व्यक्ति में पुलिस अधिकारी की शक्तियां, कार्य और विशेषाधिकार निहित रहते हैं. ऐसा प्रमाण-पत्र तब प्रभावी नहीं रहेगा जब नामित व्यक्ति किसी भी कारण से पुलिस अधिकारी नहीं रह जाता है. यानी निलंबन की सूरत में, पुलिस अधिकारी को यह प्रमाण-पत्र सरेंडर करना पड़ता है. निलंबन के दौरान, किसी पुलिस अधिकारी में निहित शक्तियां, कार्य और विशेषाधिकार भी निलंबित हो जाते हैं. यानी अधिकारी के पास कोई पावर नहीं रहती. ऐसे निलंबन के बावजूद, वह उन्हीं जिम्मेदारियों, अनुशासन और दंडों तथा उन्हीं प्राधिकारियों के अधीन कार्य करना जारी रखेगा, जैसे कि उसे निलंबित नहीं किया गया हो.
निलंबन कैसे हटता है:-
अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को सस्पेंड करने पर, राज्य सरकार को 15 दिन के भीतर केंद्र को विस्तृत रिपोर्ट भेजनी होती है. निलंबन का राज्य सरकार का आदेश 30 दिनों के लिए वैध होता है. इस अवधि को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है. निलंबन अवधि को बढ़ाए जाने का आदेश 120 दिन से ज्यादा वैध नहीं रहता. केंद्रीय/राज्य समीक्षा समिति की सिफारिश पर निलंबन को 180 दिन के लिए बढ़ाया जा सकता है. भ्रष्टाचार के अलावा अन्य आरोपों पर निलंबित सेवा सदस्य की निलंबन अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं होगी, लेकिन केंद्रीय समीक्षा समिति की सिफारिशों पर इसे एक वर्ष से अधिक समय तक जारी रखा जा सकता है. भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित सेवा सदस्य का निलंबन काल दो वर्ष से अधिक नहीं होगा.
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