
नई दिल्ली :- केंद्र सरकार बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए नए नियमों पर विचार कर रही है। इन नियमों के तहत अगर किसी परियोजना की लागत शुरूआती अनुमान से 15% ज्यादा हो जाती है, तो संबंधित मंत्रालयों और विभागों को देरी की वजहें बतानी होंगी। सूत्रों के मुताबिक, ये नए नियम मंत्रालयों और विभागों को जवाबदेह बनाने के लिए लाए जा रहे हैं। इन नियमों से लागत का गहन विश्लेषण होगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि परियोजनाएं बिना किसी अनावश्यक खर्च के समय पर पूरी हों।
कितनी परियोजनाओं में हुई देरी..?
आंकड़ों और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, 1873 बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में से 449 परियोजनाओं की लागत बढ़ गई है। इन 449 परियोजनाओं में कुल ₹5.01 लाख करोड़ का अतिरिक्त खर्च हुआ है और मार्च 2024 तक 779 परियोजनाएं अधूरी रह गई हैं। गौर करने वाली बात ये है कि ये सभी परियोजनाएं ₹150 करोड़ से अधिक लागत वाली थीं। इन अधूरी परियोजनाओं में औसतन 36.04 महीने की देरी हुई है। सरकार के भीतर अब ये विचार तेजी से मजबूत हो रहा है कि परियोजनाओं को समय पर पूरा करने और देरी से बचने के लिए उनकी निगरानी और सख्त होनी चाहिए। कई मंत्रालय अतिरिक्त धन की मांग कर रहे हैं, लेकिन देरी की वजह या परियोजना कब पूरी होगी, इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं दे रहे हैं।
चरणबद्ध तरीके से तय होगी जवाबदेही :-
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इकॉनोमिक टाइम्स को बताया कि परियोजनाओं में देरी को रोका जाना चाहिए। पिछले दो बजटों में कम से कम ₹50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ सिर्फ इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि परियोजनाओं में देरी हो गई, जिसे टाला जा सकता था। अधिकारी ने आगे बताया कि विभिन्न मंत्रालयों के बीच शुरुआती चर्चा चल रही है और इस साल के अंत तक एक नया ढांचा लागू होने की संभावना है। प्रस्तावित ढांचे में हर चरण के लिए एक अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपने की कोशिश की जाएगी। परियोजना को मंजूरी देने में लगने वाला समय, फंड जारी करने में देरी, टेंडर और चयन प्रक्रिया में लगने वाला समय और हर चरण में देरी की वजह बतानी होगी।
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