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जांजगीर-चांपा। जिले में पारंपरिक तरीके से छेरछेरा पर्व की तैयारी चल रही है। चैनल इंडिया के ब्यूरो राजेश राठौर ने इन पारंपरिक त्यौहारों को मनाने वाले महिला समूहों से बात कर इनके उत्साह को समझने का प्रयास किया। ढोल मांदर की थाप पर छत्तीसगढ महतारी की महिमा का बखान करती महिलाओं के द्वारा छत्तीसगढ महतारी का आभार जताने के लिए छत्तीसगढी गीतों का सहारा लेते हुए फसल पाने की खुशी को प्रगट करने के लिए गीत गाए जाते हैं।
कब और क्यो मनाते हैं छेरछेरा का पर्व :-
छेरछेरा तिहार को, “नए फसल के काटने” की खुशी में मनाया जाता है। क्योंकि, किसान धान की कटाई और मिसाइ पूरी कर लेते हैं, और लगभग 2 महीने फसल को, घर तक लाने में, जो जी-तोड़ मेहनत करते हैं। उसके बाद, फसल को समेट लेने की खुशी में, इस त्यौहार को मनाने की बात भी कही जाती है!पौष माह में पूर्णिमा की रात को छेरछेरा पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से याचना की थी। लोग फसलों की खेती का जश्न मनाते हैं और एक दूसरे के बीच खुशी बांटते हैं। लोग इस दिन धान के साथ हरी सब्जियां का भी दान करते है पौष पूर्णिमा से लगभग 15 दिन पहले से ग्रामीण टोली बनाते हैं, जो लकड़ी के डंडे लेकर मांदर, झांझ, मंजीरे और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ पारंपरिक लोकगीतों की धुन पर नृत्य करते हुए घर-घर पहुंचते हैं। बदले में उन्हें अन्न का दान किया जाता है। डंडा नृत्य की वैसे तो कोई विशेष वेशभूषा नहीं होती, लेकिन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आदिवासी विशेष वेशभूषा धारण करते हैं। छेरछेरा त्योहार को नए फसल कटने की खुशी में मनाया जाता है। किसान धान की कटाई और मिसाई का कार्य पूरा कर लेते हैं। लगभग दो माह फसल को घर तक लाने के लिए जीतोड़ मेहनत करते हैं। बच्चे घर-घर पहुंचकर छेरछेरा कोठी के धान ल हेरते हेरा कहकर चिल्लाते हैं। दान के रूप में उन्हें धान दिया जाता है।