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बस्तर दशहरा के बाद सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के बिलाईगढ़ का दशहरा पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है. इस दशहरा को राजशाही दशहरा के रूप में जाना जाता है. यह दशहरा 150 साल पुरानी पंरपरा को समेटे हुए है और इस साल राजशाही दशहरा महोत्सव 25 अक्टूबर को होगा. यहां की खास बात यह है कि आदिवासियों द्वारा यहां रावण दहन नहीं किया जाता। बिलाईगढ़ का राजशाही दशहरा 5 पीढ़ियों से चला आ रहा है. यहां परंपराओं का निर्वहन करते हुए आदिवासियों ने आज तक रावण दहन नहीं किया. करीब 150 साल पुरानी रावण दहन नहीं करने की परंपरा आज भी उसी तरह पूरी की जाती है. बिलाईगढ़ में महल से दो किलोमीटर की दूरी में एक रैनी भाटा मैदान है. इस मैदान में महाराजाओं के जमाने में युद्ध हुआ करता था और युद्ध में जिसकी भी जीत होती थी महाराज उसे सम्मानित करते थे. वह परंपरा आज भी चली आ रही है. लेकिन आज युद्ध की जगह खेलों का आयोजन किया जाता है. इस खेल में भाग लेने और जीतने के लिए 40 किलोमीटर के दायरे से लोग आते हैं और 15 दिन पहले से ही खेलों की तैयारी करते रहते हैं. यहां खासकर तीरंदाजी का खेल सबसे ज्यादा प्रचलन में है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, ‘बस्तर दशहरे के बाद बिलाईगढ़ का राजशाही दशहरा प्रदेश में दूसरे स्थान पर है. दशहरे के दिन राजपरिवार के लोग विशेष श्रृंगार करते हैं और शौर्य का प्रदर्शन करते हैं. इसे देखने के लिए पूरे प्रदेश से लोगों की भारी भीड़ जुटती है करीब 10 हजार लोग दशहरा देखने आते हैं. बिलाईगढ़ के राजा ओंकार शरण सिंह बताते हैं कि, ‘यहां शुरु से ही रावण दहन नहीं किया जाता था, लेकिन कुछ वर्ष पहले यहां रावण दहन किया गया था जिसके बाद बिलाईगढ़ में अशुभ घटना घटी तबसे यहां रावण दहन नहीं किया जाता. यहां के दशहरे में राजपरिवार से जितने भी लोग दर्शन के लिए आते हैं सभी कि लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है. खास बात है कि इस कार्यक्रम में किसी से सहयोग नहीं लिया जाता है, जितना भी खर्च होता है राजपरिवार की तरफ से किया जाता है.