
नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से दिल्ली से लेकर नेपाल तक भूकंप की आहट से कांप उठे. कुछ समय पहले आए भूकंप का केंद्र नेपाल था और इसकी तीव्रता भी 6.2 थी. यह इसलिए भी बड़ा था कि इसका केंद्र धरती से 5 किलोमीटर नीचे था. इस भूकंप के आते ही लोगों को साल 2015 की याद आ गई थी, जब 7.8 तीव्रता आया था और इसमें 9 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और 23 हजार से ज्यादा घायल हुए थे. उस समय नेपाल एक मलबे का ढेर बन गया था.जब भी भूकंप की बात होती है तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण यह होता है कि वह जमीन से कितने नीचे आया है. सिस्मोलॉजी में भूकंप को दो श्रेणी में बांटा जाता है. पहला सतही और दूसरा गहरा.
दुनिया में कहीं भी भूकंप आए उन्हें इन्हीं दो श्रेणी में रखा जाता है.1. सतही भूकंप का केंद्र जमीन से 70 किलोमीटर नीचे तक माना जाता है. इसकी तीव्रता काफी तेज होती है, धरती बहुत जोर तक हिलती है और इसमें भूकंप के झटके कम दूरी तक महसूस किए जाते हैं.2. दूसरी श्रेणी में 70 किलोमीटर से ज्यादा नीचे होता है. इनकी तीव्रता पृथ्वी की सतह पर कम होती है और यह बड़े क्षेत्र में महसूस किए जाते हैं.हिमालय और हिंदकुश का रेंज भारत में बड़े भूकंप को संभावना को देता है जन्मदुनिया में बड़े भूकंप हिमालय के आस-पास आए हैं. साल 2015 में नेपाल में या 2005 में पीओके के मुज्जफराबाद में 7.6 का भूकंप आया. इसी तरह 1905 में कांगडा में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था. इन सभी की तीव्रता काफी ज्यादा थी. हालांकि हिमालय रिजन में अब तक का सबसे बड़ा भूकंप 6 जून 1505 को आया था, लेकिन उस समय भूकंप को मापने का कोई तरीका नहीं था, इसलिए उसको सही से मापा नहीं गया था, लेकिन उससे आई तबाही के कारण उसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है.
उस भूकंप से आई तबाही को देखते हुए इसकी तीव्रता 8.2 से 8.8 के बीच आंकी जाती है, जो इस खास रिजन के इतिहास में सबसे बड़ा भूकंप बनाते हैं. इस भूकंप में नेपाल की लगभग 30% आबादी मारी गई थी. इस भूकंप का केंद्र मुस्तांग के बेनी शहर के पास था. भूकंप के झटके भारत, चीन और नेपाल के अन्य हिस्सों में भी महसूस किए गए थे. यह भूकंप इतना जबरदस्त था कि इससे हिमालय पर्वत में दरारें पड़ गई थीं, जिससे ग्लेशियर टूट गए और बाढ़ आ गई.बरसों से आ रहे भूकंप के कारण वैज्ञानिकों ने भारत को कई जोन में बांटा है, लेकिन हिमालय के आस-पास के हिस्सों को सबसे खतरनाक श्रेणी में बताया गया है.
भूकंपीय जोन के मुताबिक, देश का करीब 69 फीसदी हिस्सा मध्यम या गंभीर भूकंप की चपेट में आ सकता है.जोन 5 सबसे खतरनाकभूकंप के लिहाज से सबसे खतरनाक और सक्रिय जोन है, जिसमें कश्मीर और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह आते हैं. इन हिस्सों में बड़े और विनाशकारी भूकंप की आशंका हमेशा रहती है. 26 जनवरी 2001 को भारत के भुज में बड़ा भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता 7.7 थी.
हालांकि भूकंप की तीव्रता से तबाही नहीं मापी जा सकती. इसके पीछे वहां की मिट्टी और आबादी भी काफी मायने रखती है.साल 2020 में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोट के अनुसार, दिल्ली में एक बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है. एमसीडी और भूवैज्ञानिकों की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में अगर 7.8 तीव्रता वाला भूकंप आया तो यहां की 80 फीसदी इमारतें गिर सकती हैं. दिल्ली सिस्मिक जोन 4 में आता है और यहां पर भूकंप आने का खतरा बहुत ज्यादा है. ऐसे में बड़ा भूकंप आने के बाद यमुना के पास बसे इलाकों में काफी तबाही हो सकती है.
दिल्ली-नेपाल में भूकंप आने का दूसरा कारणदिल्ली और नेपाल में भूकंप आने का दूसरा कारण यह भी है कि ये दोनों क्षेत्र दो विशाल टेक्टोनिक प्लेटों, भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट की सीमा पर स्थित हैं. भारतीय प्लेट उत्तर की ओर बढ़ रही हैं और यूरेशियन प्लेट के साथ टकरा रही हैं. इस टक्कर के कारण दोनों प्लेटों में तनाव पैदा होता है, जो भूकंप का कारण बनता है.दिल्ली में भूकंप आने का एक अन्य कारण यह है कि यह क्षेत्र एक भूकंपीय दरार के पास स्थित है. यह दरार हिमालय पर्वत श्रृंखला के निर्माण के दौरान बनी थी.नेपाल में भूकंप आने का एक प्रमुख कारण यह है कि यह क्षेत्र तिब्बत प्लेट और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट की सीमा पर स्थित है.